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Q. No. 364

MR. CHAIRMAN: Q. No. 364 – hon. Member absent. मंत्री जी, आप जबाव दे दीजिए।

श्री रवि शंकर प्रसाद : सर, माननीय मंत्री जी के उत्तर से प्रतीत होता है कि जितना इन्वेस्टमेंट हुआ है, उस पर वे 12 प्रतिशत रिटर्न कमा रहे हैं। यह तो अच्छा कमा रहे हैं। दूसरी तरफ, देश में कोयले के लिए परेशानी होती है क्योंकि बिजली के लिए कोयले की जरूरत है और 64 परसेंट बिजली का उत्पादन कोयले पर निर्भर है। माननीय प्रधान मंत्री जी की उपस्थिति का लाभ लेते हुए, मेरा एक सवाल है कि इन आवश्यकताओं को देखते हुए एक बिल है जो स्टैंडिंग कमेटी से एप्रूव्ड है और इस हाउस में पेंडिंग है जिसके अंतर्गत आप प्राइवेट प्लेयर्स को भी पारदर्शी प्रमाणिक तरीके से कमर्शियल एक्सप्लायटेशन के लिए अवसर देंगे। क्या आपकी सरकार का ऐसा मत है कि बिजली के लिए कोयले की कमी को देखते हुए, रिफार्म्स के अंतर्गत इस दिशा में प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित किया जाए?

(1F/ASC पर आगे)

ASC-KLS/11.25/1F

श्री श्रीप्रकाश जायसवाल : सर, इसमें कोई शक नहीं है कि हमारे देश की ऊर्जा की आवश्यकताओं की ज्यादातर आपूर्ति कोयले से ही होती है। कोयले का उत्पादन बढ़ाने से हमारे देश की ऊर्जा का उत्पादन बढ़ सकता है। इसके लिए

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निरंतर प्रयत्न किए जाते रहे हैं। बहुत सारे कोल ब्लॉक्स भी दिए गए हैं, जबकि कोल ब्लॉक्स के माध्यम से यह उम्मीद की गई थी कि उनसे कोयले का उत्पादन बढ़ेगा और हमारे देश की ऊर्जा आवश्यकताओं की आपूर्ति होगी। लेकिन जितने कोयले के उत्पादन की कल्पना की गई थी, उतने कोयले का उत्पादन नहीं बढ़ पाया। उसके बहुत से कारण हैं, जैसे लैंड इक्विज़िशन की प्रॉब्लम है, लॉ एंड आर्डर की प्रॉब्लम है, किसी स्टेट में नक्सल प्रॉब्लम है और किसी स्टेट में माओवादी प्रॉब्लम है। इसलिए बहुत सारे व्यवधानों की वजह से उतने कोयले का उत्पादन नहीं हो पाता, जितना कि हमारे देश की आवश्यकता है।

वैसे हमारे देश की आवश्यकताएं भी पिछले पांच-सात सालों से तेजी से बढ़ी हैं। देश में जिस तेजी के साथ industrialization हुआ है और जिस तेजी से ऊर्जा की मांग बढ़ी है, उनके अनुरूप कोयले का उत्पादन नहीं हो पाया है। इसके लिए सलाह दी गई है कि जो लोग कोयले की आवश्यकता महसूस करते है, जो लोग पावर प्लांट लगा रहे हैं, उनको थोड़ा विदेशों की ओर भी झांकना चाहिए और वहां से कोयला आयात करना चाहिए, ताकि हमारे देश की कोयले की मांग को पूरा किया जा सके।

माननीय सदस्य ने जिस बिल के बारे में कहा है, वह बिल आज भी राज्य सभा में लम्बित है और हमें उम्मीद करनी चाहिए कि कोई ऐसा consensus

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develop होगा, जिसमें सभी लोग मिलकर देश की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ...(व्यवधान)..



श्री रवि शंकर प्रसाद : मंत्री जी, वह सात सालों से पेंडिंग हैं।

श्री श्रीप्रकाश जायसवाल : हां, इसमें कोई शक नहीं है कि वह सात सालों से पेंडिंग है। ...(व्यवधान)..

श्री रवि शंकर प्रसाद : क्या आप इसके लिए कोई प्रयास करेंगे?

श्री श्रीप्रकाश जायसवाल : आपको भी प्रयास करना है और हमें भी प्रयास करना है। ...(व्यवधान)..

श्री रवि शंकर प्रसाद : मंत्री तो आप हैं। यह बिल पिछले सात सालों से पेंडिंग है।..(व्यवधान)..

श्री श्रीप्रकाश जायसवाल : सर, जब सभी लोग मिलकर प्रयास करेंगे तो इसमें कोई शक नही हैं कि कमर्शियल मॉइनिंग का बिल आने वाले समय में पारित हो सकता है और देश की ऊर्जा की आवश्यकताओं की आपूर्ति की जा सकती है।

SHRI MOINUL HASSAN: Sir, according to the reply of the Minister, there is no correlation between royalty rates on coal and the RoR on the investment in CIL. It is a fact, Sir. But, it is also a fact that the rate of return is reflected in the price collected from the consumers. My specific question is, if the rate of return increases, will it

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automatically increase the royalty to the States or not? This is my specific question.



श्री श्रीप्रकाश जायसवाल : सर, माननीय सदस्य ने जिस प्रश्न की ओर ध्यान आकर्षित किया है, मैं कहना चाहता हूं कि जैसे ही price बढ़ती है, उसी हिसाब से royalty बढ़ती चली जाती है। हां, यह बात जरूर है कि कुछ ऐसी स्टेट्स हैं, जहां F और G grade का कोयला उत्पादित होता है, उन स्टेट्स में royalty उतनी नहीं बढ़ पाती है। जहां पर improved quality का कोयला मिलता है, वहां पर royalty बढ़ जाती है, लेकिन इसमें कोई शक नहीं है कि price बढ़ने के साथ-साथ royalty भी बढ़ती जाती है।

श्री रामदास अग्रवाल : सभापति महोदय, माननीय मंत्री जी ने कहा है कि 12 per cent या 12 per cent से ज्यादा का रिटर्न मिल रहा है। यह संतोष की बात हो सकती है, लेकिन मैं यह भी जानना चाहता हूं कि पिछले तीन वर्षों में कोयले की cost of production कितनी बढ़ी हैं और उसके मुकाबले आपने selling prices को इन तीन सालों कि कितना बढ़ाया है? इन दोनों के comparison के बाद जो आपका 12 per cent रिटर्न है, क्या आप इससे संतुष्ट हैं?

श्री श्रीप्रकाश जायसवाल : सर, रिटर्न से संतुष्ट तो कभी नहीं हुआ जा सकता, लेकिन 12 per cent का रिटर्न भी कोई कम नहीं होता है। तीन सालों में कोयले

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के price एक बार बढ़ाए गए हैं और अभी कोयले के price बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नही है क्योंकि इसका सीधा असर ऊर्जा पर पड़ता है। अगर कोयले के price बढ़ाए जाते हैं तो बिजली की कीमत बढ़ जाती है, जिससे पूरे देश में महंगाई के आसार बढ़ जाते हैं, इसलिए अभी कोई ऐसा प्रस्ताव नहीं है।

(समाप्त)



(1G/LT-SSS पर आगे)

SSS-LT/1G/11.30

Q. NO. 365

DR. GYAN PRAKASH PILANIA: Sir, my area of concern is: huge pendency of cases under trial, delay in disposal of cases and every year, new inclusion is more than the disposal. That way cases will keep on accumulating and accumulating. This is one concern and I ask the hon. Minister: does he agree that justice delayed is justice denied? Is he aware that five days back, on 15th of December, the Supreme Court had castigated the trial court as well as CBI in L.N. Mishra’s murder case which is pending for the last 37 years? It is a horrendous state of affairs. A murder trial goes to four decades.

MR. CHAIRMAN: Please put your question.

DR. GYAN PRAKASH PILANIA: Sir, this is the question. Is he aware of this kind of absurdity and my specific query was: how many cases are pending trials for more than 25 years? Reply has not been given and it has been told that information is not being maintained centrally. If it is not being maintained centrally, then, why don’t you get information from High Courts? It was your duty to call for the information and furnish this House with the information.

Q. NO. 365 (CONTD.)

SHRI SALMAN KHURSHEED: I am very obliged to the hon. Member for having highlighted something which is of extremely critical concern to all of us across the floor, on both sides, to the average Indian citizen and it is for that reason that a National Mission has been set up. My predecessor colleague, Mr. Moily is here as well. During his time a National Mission, for this purpose, has been set up which will go on till 2016. We are working on how ICT can be harnessed for disposal of cases, computerisation of all courses including all the subordinate courts will provide us with immediate information, the real time information that is necessary under the National Arrears Grid. That will allow us to manage courts better. The Thirteenth Finance Commission has allocated Rs. 5000 crores for the purpose which relates to reducing pendency and increasing disposal of cases. That would include, with the cooperation of the Bar, some very far-reaching measures such as increasing the period for which the judges sit, also using of shift courts, morning and evening shift courts, using of Gram Nyayalayas, using alternative dispute resolution. I would bring to my learned friend’s notice that as far as the pendency is concerned,

Q. NO. 365 (CONTD.)

the information that we do have now, before real time information can be made available and this will happen over the next two years, in the High Courts and Subordinate Courts, 74 per cent of the pendency of cases is less than five years old. Around 3.2 crore cases are pending but, 74 per cent of those are less than five years old, 26 per cent are more than five years old. So, we are concerned about such cases and our intention and our purpose and our effort is to ensure that we reduce the pendency between three to five years. This is what we are working towards and I believe the Mission Mode will be successful over the next three years.



श्री सभापति : दूसरा सवाल पूछिए।

DR. GYAN PRAKASH PILANIA: Sir, my second supplementary is, we have been hearing this concern of the Government every time, whenever pendency of cases comes as a question in this House, In lower House also, I think, the same should be happening. ज्यूँ-ज्यूँ दवा की मर्ज़ बढ़ता गया। I will just mention that at present 42 lakh cases are pending in High Courts and institution was 1,71,000 in the year and disposal was 1,56,000. Like this, it will keep on accumulating,

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accumulating, accumulating. Until something drastic is done, things won’t improve. दादा केस करे और पोता उसका नतीजा सुने। It is no speed at all and it very adversely affects the poorest of the poor. Something must be done.



SHRI SALMAN KHURSHEED: Sir, I will once again assure my friend, the hon. Member that every effort is being put to ensure that pendency is reduced, that disposal of cases are speeded up.

(Contd. by NBR/1H)

AKG-NBR/1H/11.35

SHRI SALMAN KHURSHEED (CONTD.): In this regard, may I mention here, as far as the effort of introduction of the Fast Track Courts was concerned, this was a one-time effort. Sir, 39.23 lakh cases were given to the Fast Track Courts. Out of this, 32.99 lakh cases have already been disposed of. Originally, the Fast Track Courts were set up for five years. We have extended the period for another five years. By the end of December, we hope that most of these cases would be disposed off.

Q. NO. 365 (CONTD.)

Sir, the State Governments, as far as their own decision-making is concerned, are free to continue with the Fast Track Courts. The Central Government will not be funding the Fast Track Courts any further. But, we hope that the Fast Track Courts procedure, the Fast Track Courts attitude and the system will continue. It is, certainly, true that the disposal, sometimes, particularly in High Courts, is unable to keep pace with the new cases. But, I think, when new case comes to court, it is also an indication of the confidence of the litigating public and the ordinary citizen in the system of law in our country. And, therefore, they are willing to come to courts. But, we, certainly, do realize that there has to be much more done in terms of alternative dispute resolution.

Also, now, with the amendments that have made to the Cr.P.C., all courts first do require disputes to be referred to an alternative disputes resolution and then it, actually, put to trial only if it is found that reconciliation, negotiations and alternative disputes

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resolution that is offered is not workable. So, we are working on several prongs to ensure that we have an effective delivery system.



The Mission Mode effort that is being put in, I believe, will give us a different situation. And, we would not only be restricting ourselves to expressing our concern, but we will be able to show you some very different delivery over the next three years.

प्रो. राम गोपाल यादव : श्रीमन्, मेरा specific सवाल हाई कोर्ट्स में जो न्यायिक प्रक्रिया है, उससे सम्बन्धित है। यह देखा जा रहा है कि जो writ petitions होती हैं, उनमें stay देना और नोटिस करना, जजेज का काम ज्यादातर यहीं तक सीमित रह गया है। जो अपील के मामले आते हैं, जिनमें सुनवाई होती है, वे बीसों साल ऐसे ही पड़े रहते हैं, उनको कोई सुनने वाला नहीं होता है। क्या माननीय मंत्री जी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस से बात करके जजेज के लिए कोई इस तरह की प्रक्रिया निर्धारित करेंगे कि उनको इतने केसेज को सुनना ही है और अगर उनके सामने अपील के केसेज हैं, तो उनको dispose of करना है, क्योंकि यह नहीं हो पा रहा है और जो आम आदमी है, जो aggrieved है, उसकी यह हैसियत नहीं है कि वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जाए? वकील प्रतिदिन कितनी फीस लेते हैं, यह आप अच्छी तरह जानते हैं कि आदमी वहाँ जा ही नहीं सकता है। एक दिन में लिस्ट में दो सौ केसेज आ जाते

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हैं, पता चला कि जज साहब एक घंटा बैठे और चले गए, अब फिर छ: महीने तक कोई नम्बर नहीं आ रहा है और आदमी चक्कर लगा रहा है। क्या आप कोई इस तरह की व्यवस्था करेंगे कि जजेज मामले सुनें और उनके निर्णय दें?

श्री सलमान खुर्शीद : सर, मैं जानता हूँ कि मेरे अपने प्रान्त में इलाहाबाद हाई कोर्ट के सन्दर्भ में और वैसे भी जो लोअर कोर्ट्स की एक सामान्य स्थिति है, उसके सन्दर्भ में आपने जो संकेत दिए हैं, वे सही हैं और यह एक चिन्ता का विषय है। इसी कारण हमने National Arrears Grid बनाने का एक कदम उठाया है। National Arrears Grid में हमें कम-से-कम यह सूचना हर समय प्राप्त रहेगी कि किस-किस केस में कितना समय लगा है, वे केसेज कहाँ-कहाँ पर लम्बित हैं और क्या कारण हैं, जिनसे उस केस की सुनवाई नहीं हो सकती। जजेज की कमी एक बहुत बड़ा कारण है। जो निचले स्तर के कोर्ट्स हैं, जो subordinate courts हैं, उनमें infrastructure की पूर्ति न होना भी एक बहुत बड़ा कारण है।

(1जे/एससीएच पर जारी)

SCH-USY/11.40/1J

श्री सलमान खुर्शीद: इसीलिए हमारा यह निर्णय है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर को पूरा किया जाए। 13वें फाइनांस कमिशन ने इसके लिए 5000 करोड़ रुपया आबंटित किया था, जिसमें से 1325 करोड़ रुपया हम स्टेट्स को दे चुके हैं। इस रुपये का

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इस्तेमाल स्टेट्स को morning-evening shifts के लिए, Special Magistrate Courts के लिए, अधिक समय जजिज़ को बैठाने के लिए, कोर्ट मैनेजर्स एपॉइंट करने के लिए और एडीआर सैंटर्स यानी Alternative Dispute Resolution Centers बनाने के लिए करना है।

इस संदर्भ में मैं यह भी बताना चाहता हूं कि हमारा अनुमान और लक्ष्य है कि 31 मार्च, 2012 तक 12000 Subordinate Courts कम्प्यूटर से लिंक हो जाएंगे। हमारा यह भी अनुमान है कि 31 मार्च 2014 तक हम 14250 कोर्ट्स को कंप्यूटर से लिंक करने का काम पूरा कर लेंगे। जब यह कम्प्यूटराइज्ड सिस्टम आ जाएगा, तो आज जो बहुत सारी समस्याएं हैं, वे दूर हो सकेंगी।

समय से जजिज़ की नियुक्ति हो सके, यह भी एक बहुत बड़ी समस्या है और जैसा कि आप जानते हैं कि जजिज़ की नियुक्ति, विशेषत: हाई कोर्ट्स में जज़िज की जो नियुक्ति है ...(व्यवधान)

प्रो. राम गोपाल यादव: नियुक्ति का काम भी तो आपको ही करना है।

श्री सलमान खुर्शीद: नहीं-नहीं, वह आपको और हम सबको मिल कर करना होगा। व्यवस्था में परिवर्तन हम सबको मिल कर करना होगा, क्योंकि उसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी और वह काम हम लोग, आप सबके सहयोग से मिल कर करेंगे। परामर्श के लिए सारी प्रान्त सरकारों को हम लिख चुके हैं और कुछ प्रान्त सरकारों के परामर्श हमें प्राप्त भी हो चुके हैं। हमारा

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आप सभी से निवेदन है कि अपने-अपने प्रान्त की सरकारों से कहें कि वे हमें जल्द से जल्द अपने परामर्श दे दें, ताकि judicial system में जो संशोधन करने हैं, जो परिवर्तन लाने हैं, उन्हें हम लोग आम सहमति से कर सकें।

DR. JANARDHAN WAGHMARE: It is a fact that there is a huge pendency in the Supreme Court and in the High Courts also. One of the chief reasons for this is the paucity of judges. Hundreds of posts are vacant. And, they are lying vacant for years together. What steps are being taken to fill in these posts?

श्री सलमान खुर्शीद: सर, यह जो समस्या है, वह हाई कोर्ट्स की ज्यादा है। हाई कोर्ट्स में जजिज़ की नियुक्ति की प्रक्रिया collegium system पर आधारित है। पहले केन्द्र सरकार के पास collegium से प्रस्ताव पहुंचता है और फिर केन्द्र सरकार collegium के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट के पास भेजती है। जब तक सुप्रीम कोर्ट के collegium से उन प्रस्तावों पर कोई निर्णय वापिस नहीं मिलता है, तब तक हम उस पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकते। इसीलिए मैंने कहा था कि हमारा सभी प्रान्तों से विशेष आग्रह है कि जल्द से जल्द इस पर वे अपने परामर्श हम तक पहुंचाएं ताकि इस पर आगे की कार्यवाही हो सके।

सर, वैसे मैं इतना बता दूं कि हमने सभी चीफ जस्टिसिज़ से आग्रह किया था कि जुलाई से लेकर दिसम्बर के बीच pending cases को dispose of करने



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के लिए वे एक विशेष ड्राइव करें। इस कैम्पेन में हमने उन केसिज़ को प्राथमिकता दी थी, जो महिलाओं से संबंधित हों, वृद्ध व्यक्तियों से संबंधित हों, marginalized groups यानी पिछड़े हुए समुदाय या वर्गों से संबंधित हों और बच्चों से संबंधित हों।

DR. E.M. SUDARSANA NATCHIAPPAN: Sir, there are two main issues. One is that the High Courts and Supreme Court expect some financial independence and flexibility by increasing court fee because in the Supreme Court, the maximum court fee is Rs. 2,500/- only, though crores of rupees can be adjudicated. Is there a proposal to increase the financial flexibility and also financial independence of the Judiciary? Number two, the working hours and sitting hours of the High Courts and the Supreme Court are narrowing down. It goes like a pyramid. The lower courts sit for a larger time, but the Supreme Court and the High Courts sit for only one-third of the total working days and hours. Will proper workable days be fixed for them?

SHRI SALMAN KHURSHEED: Sir, the hon. Member is fully aware that the higher you go the greater amount of effort and reflection is necessary for quality of justice. Just disposal of cases and giving

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targets and expecting that it will be adequate address, as far as our concerns are concerned, would not be very sensible.



(Contd. by 1k – PK)

-USY/PK-PSV/1K/11.45

SHRI SALMAN KHURSHEED (CONTD.): I do realise that this is also something that the judges of the superior courts are aware. There is an expectation that they will work longer hours, they will work on holidays as well, or whether they can sit for larger number of days in a year --all this is under the contemplation of the judges of the High Court. Periodically, we have meetings of all the Chief Justices. The Chief Justice of India calls the meeting of the Chief Justices of the High Courts where all these matters are discussed. We, informally and formally, from time to time remain in touch with the Chief Justice on this score. Sir, may I just also indicate to hon. Members that efforts have also been made by amendments to the Code of Criminal Procedure as well as the Code of Civil Procedure where attempts have been made to ensure that many bottlenecks are cleared. One of the important amendments that was made in 2005 included the concept of

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plea bargaining in those areas which are other than areas where the punishment for the offence is death, life imprisonment or imprisonment for more than seven years or where the cases involve socio-economic conditions relating to the country or a woman or a child below 14 years. So, every possible effort is being made and I do hope in the months and years to come, the picture will improve.

(Ends)
प्रश्न संख्या-366


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